इंडियन एक्सप्रेसके पहले पन्ने पर ब्रितानी आर्चबिशप जस्टिन वेल्बी की तस्वीरछपी है. जस्टिन वेल्बी इन दिनों भारत दौरे पर हैं और मंगलवार को वो पंजाब के अमृतसर गए थे.
जस्टिन वेल्बी अमृतसर में जलियांवाला बाग स्मारक पर जाकर लेट गए और उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए माफ़ी मांगी.
उन्होंने कहा कि वो इस जनसंहार से ‘बेहद दुखी और शर्मिंदा’ हैं. जस्टिन वेल्बी की दंडवत मुद्रा में तस्वीर अख़बार के पहले पन्ने पर है और इसे कैप्शन दिया गया है: ‘Ashamed and Sorry‘
आर्चबिशप ने कहा, “उन्होंने जो कुछ किया उसे आपने याद रखा है और उनकी यादें ज़िंदा रहेंगी. यहां जो अपराध हुआ, उससे मैं शर्मशार और दुखी हूं. एक धार्मिक नेता के तौर पर मैं इस त्रासदी पर शोक व्यक्त करता हूं.”
13 अप्रैल 1919. ये वो दिन था जो हर भारतीय को सदियों के लिए एक गहरा जख़्म दे गया.
जलियाँवाला बाग़ नरसंहार को व्यापक रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है, जिसने “अंग्रेजी राज” का क्रूर और दमनकारी चेहरा सामने लाया, अंग्रेजी राज भारतीयों के लिए वरदान है, उसके इस दावों को उजागर किया.
कई इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना के बाद भारत पर शासन करने के लिए अंग्रेजों के “नैतिक” दावे का अंत हो गया.
इस घटना ने सीधे तौर पर एकजुट राजनीति के लिए भारतीयों को प्रेरित किया, जिसका परिणाम भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के रूप में देखा गया.
यहां तक की कहानी इतिहास के किताबों में दर्ज है. कैसे महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के ख़िलाफ़ देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में कई हिस्सों में बड़े पैमाने प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा.